आधार छंद - दिगपाल (मापनी युक्त)
मापनी - 221, 2122, 221, 2122
अथवा - गागाल गालगागा गागाल गालगागा
समान्त - आरा <> अपदान्त।
1.
जब कृष्ण ने सुदामा के पाँव को निहारा।
तब अश्रु से बनी उस जलधार से पखारा ।।
2.
जो कांख में छिपे थे, तंदुल सभी चबाये,
फिर स्नेह - भोग खाकर , देता उसे किनारा ।।
3.
पहुँचा दुखी हृदय से, घर की डगर पकड़ जब,
लज्जित न हो सुदामा, उसको न तब दुलारा।।
4.
फिर बह दुखित कदम भर, अपनी डगर चला जब,
तब सोचने लगा बह - - - कोई नहीं हमारा।।
5.
सुन्दर नगर दिखा इक, सोचे- - - भटक गया हूँ,
पत्नी दिखी सजी जब , देखा उसे दुबारा ।।
6.
अब बह समझ गया यह, उपकार मित्र का ही,
तब कृष्ण को सुदामा, कह कर सखा पुकारा।।
7.
सोचो, कभी मिलेगा, ऐसा सखा जगत में,
साम्राज्य दे दिया फिर, कहे' कम दिया सहारा।।
सुषमा गुप्ता (महाराष्ट्र)
24/01/2018
मापनी - 221, 2122, 221, 2122
अथवा - गागाल गालगागा गागाल गालगागा
समान्त - आरा <> अपदान्त।
1.
जब कृष्ण ने सुदामा के पाँव को निहारा।
तब अश्रु से बनी उस जलधार से पखारा ।।
2.
जो कांख में छिपे थे, तंदुल सभी चबाये,
फिर स्नेह - भोग खाकर , देता उसे किनारा ।।
3.
पहुँचा दुखी हृदय से, घर की डगर पकड़ जब,
लज्जित न हो सुदामा, उसको न तब दुलारा।।
4.
फिर बह दुखित कदम भर, अपनी डगर चला जब,
तब सोचने लगा बह - - - कोई नहीं हमारा।।
5.
सुन्दर नगर दिखा इक, सोचे- - - भटक गया हूँ,
पत्नी दिखी सजी जब , देखा उसे दुबारा ।।
6.
अब बह समझ गया यह, उपकार मित्र का ही,
तब कृष्ण को सुदामा, कह कर सखा पुकारा।।
7.
सोचो, कभी मिलेगा, ऐसा सखा जगत में,
साम्राज्य दे दिया फिर, कहे' कम दिया सहारा।।
सुषमा गुप्ता (महाराष्ट्र)
24/01/2018